बचपन अब होगा जागरूक! स्कूलों में पहुंचा कानून और अधिकारों का संदेश"
बचपन अब होगा जागरूक! स्कूलों में पहुंचा कानून और अधिकारों का संदेश"

बच्चों के अधिकारों को लेकर जसवंतनगर के स्कूलों में चला जागरूकता अभियान, मिली संवैधानिक जानकारी
जसवंतनगर/इटावा। बचपन सुरक्षित हो, शिक्षित हो और सम्मानित हो — इसी संकल्प के साथ जिला विधिक सेवा प्राधिकरण इटावा द्वारा जसवंतनगर क्षेत्र के विभिन्न विद्यालयों में विधिक जागरूकता शिविरों का आयोजन किया गया। ये शिविर उच्च प्राथमिक विद्यालय कुरसेना, कंपोजिट विद्यालय जसवंतनगर और उच्च प्राथमिक विद्यालय मलाजनी में आयोजित हुए, जिसमें बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को उनके अधिकारों, सुरक्षा और कानूनी संरक्षण के प्रति जागरूक बनाना था, ताकि वे एक सशक्त, सुरक्षित और आत्मनिर्भर नागरिक बन सकें।
“कानूनी जागरूकता से बच्चों में आत्मबल पैदा होता है” — खंड शिक्षा अधिकारी खंड शिक्षा अधिकारी गिरीश कुमार ने कुरसेना में आयोजित शिविर को संबोधित करते हुए कहा, "जब बच्चों को उनके अधिकारों और कानूनी संरक्षण की जानकारी दी जाती है, तो उनके भीतर आत्मविश्वास बढ़ता है। यह उन्हें न केवल अपने लिए, बल्कि समाज के लिए भी जागरूक बनाता है।"
चाइल्डलाइन 1098 और सरकारी योजनाओं की जानकारी बाल संरक्षण विशेषज्ञ प्रेम कुमार शाक्य ने
बच्चों को बताया कि संकट की घड़ी में चाइल्डलाइन हेल्पलाइन 1098 उनकी मदद के लिए 24x7 उपलब्ध है। उन्होंने बच्चों को मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना व स्पॉन्सरशिप योजना के अंतर्गत मिलने वाली सरकारी सहायता की जानकारी दी, जिससे अनाथ और संकटग्रस्त बच्चों को नया जीवन मिल सके। संविधान और बाल अधिकारों की गहराई से चर्चा पीएलवी ऋषभ पाठक एवं कुमारी नीरज ने संविधान और कानून की भाषा को बच्चों के लिए सरल रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया: अनुच्छेद 24 और बाल श्रम अधिनियम की धारा 3 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराना कानूनन अपराध है।
पॉक्सो अधिनियम 2012 की विभिन्न धाराएं बच्चों को यौन अपराधों से कानूनी सुरक्षा प्रदान करती हैं।
अनुच्छेद 21 बच्चों को सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार देता है, वहीं अनुच्छेद 14 के तहत सभी बच्चों को समानता का अधिकार प्राप्त है — चाहे उनका सामाजिक, आर्थिक या धार्मिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
हर बच्चे को शिक्षा और विश्राम का अधिकार
पीएलवी रामसुंदर दुबे ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम की जानकारी दी, जिसके तहत 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा मिलनी चाहिए।
पीएलवी लालमन बाथम ने बच्चों को बताया कि शिक्षा के साथ-साथ खेलना, मनोरंजन करना और आराम करना भी उनका मौलिक अधिकार है, जिसे संविधान और अंतरराष्ट्रीय संधियाँ भी मान्यता देती हैं।
अभिभावकों और शिक्षकों ने सराहा प्रयास
कार्यक्रम में उपस्थित अभिभावकों और शिक्षकों ने इस पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि बच्चों को कानून और अधिकारों की जानकारी देना समय की मांग है। यह न सिर्फ बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि एक जागरूक समाज की नींव भी तैयार करता है। --- 📌
संपादकीय टिप्पणी: इस प्रकार के विधिक जागरूकता शिविरों की निरंतरता और विस्तार आवश्यक है, ताकि समाज के सबसे नाजुक वर्ग — बच्चों — को उनके अधिकारों के प्रति सजग किया जा सके।
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